अब कहती हो प्यार हुआ है क्या अधिकार तुम्हारा है
नींद चुराकर तुमने मेरी
हर ख्वाब हमारे बेच दिए
धूप चुराकर तुमने मेरी
सरहद जैसे खींच दिए
जब गीत सुनाता था सावन का
तुम पतझर की लोरी सुनती थी
जब कहता था मैं हाल दिलो का
तुम तानो से मुझको बुनती थी
देख रहा था सपने तुम संग
तुमने झटके में तोड़ दिए
अब कहती हो प्यार हुआ है
क्या अधिकार तुम्हारा है।
जब चाहा दिल से खेल लिया
जब चाहा फीर से प्यार किया
तुमने मेरी जान बनकर
मेरी जान को बेच दिया।
जब मैं टूटा था खुद में
बन्द दरवाज़ों में मैं रोता था
तुम सोती होगी मखमल पर
मैं तो काँटो पर सोता था
चैन हमारा लूट लिया
तुम अपने अल्फाज़ो से
अब उम्र ढली तो प्यार हुआ है
क्या अधिकार तूम्हारा है
मेरे हृदय के मन्दिर में
क्या स्थान तुम्हारा है
😊😊
हर ख्वाब हमारे बेच दिए
धूप चुराकर तुमने मेरी
सरहद जैसे खींच दिए
जब गीत सुनाता था सावन का
तुम पतझर की लोरी सुनती थी
जब कहता था मैं हाल दिलो का
तुम तानो से मुझको बुनती थी
देख रहा था सपने तुम संग
तुमने झटके में तोड़ दिए
अब कहती हो प्यार हुआ है
क्या अधिकार तुम्हारा है।
जब चाहा दिल से खेल लिया
जब चाहा फीर से प्यार किया
तुमने मेरी जान बनकर
मेरी जान को बेच दिया।
जब मैं टूटा था खुद में
बन्द दरवाज़ों में मैं रोता था
तुम सोती होगी मखमल पर
मैं तो काँटो पर सोता था
चैन हमारा लूट लिया
तुम अपने अल्फाज़ो से
अब उम्र ढली तो प्यार हुआ है
क्या अधिकार तूम्हारा है
मेरे हृदय के मन्दिर में
क्या स्थान तुम्हारा है
😊😊
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